Friday, November 7, 2008



Article of Jean D'reze on Corruption in NREGA in Published in Prabhat Khabar, 07-11-08, Page 07

नरेगा की बदहाली और शासनतंत्र



बलराम


झारखंड में नरेगा की बदहाली खुद सरकारी आंकड़ों से बयान होती है। यह इस राज्य का एक और बड़ा दुभाग्य है। नरेगा कानून का लाभ उठाकर देश के अन्य राज्य अपनी ग्रामीण आबादी की किस्मत संवार रहे है। लेकिन झारखंड में इसकी पूरी रािश लूट का िशकार हो रही है। काम के अभाव में ग्रामीण आबादी पलायन। अन्य राज्यों में शोषण और राज ठाकरे जैसे लोगों की नफरत सहने को विवश है। लेकिन राज्य के मुख्य सचिव को नरेगा से जुड़े मामलों पर कोई बैठक करते कभी नहीं देखा जाता। एक विडंबना यह भी है कि विभागीय मंत्री के मुंह से इस योजना का नाम शायद ही कभी सुना गया हो। मंत्री महोदय द्वारा नरेगा में ठेकेदारी को बढ़ावा देने की कोिशशों की चर्चा जरूर सामने आती रही है।सरकारी आंकड़े बताते हैं कि गांवों में हर जरूरतमंद परिवार को साल में कम से कम एक सौ दिन काम देने का लक्ष्य झारखंड में पूरी तरह विफल रहा। नरेगा के अंतर्गत विकास रािश का बड़ा हिस्सा खर्च होने के बावजूद ग्रामीणों को रोजगार नहीं मिल पाया। इसका बड़ा कारण यह रहा कि ठेकेदारों और मशीनों के जरिये काम कराये गये जिसके कारण रोजगार का सृजन नहीं हो पाया। पंचायतों के अभाव के कारण ग्रामसभाएं भी ठेकेदारों की कठपुतली मात्र बनकार रह जाती है। भारत सरकार के ग्रामीण विकास मंत्रालय की वेबसाइट पर झारखंड के आंकड़े इस बदहाली का सबूत हैं। वषZ 2007-08 में फरवरी महीने तक मात्र 16।7 लाख परिवारों को रोजगार दिया जा सका। जबकि इस अवधि तक जोब कार्ड रखने वाले परिवारों की संख्या 29।5 लाख थी। यानी जोब कार्ड रखने वाले 44 प्रतिशत परिवारों को रोजगार नहीं दिया जा सका। हालांकि सरकारी आंकड़ों के खेल में दिखाया गया है कि शेष परिवारों ने रोजगार की मांग ही नहीं की। हर जिले के आंकड़ों में जितने परिवारों को रोजगार मिला, उतने ही परिवारों द्वारा मांग किये जाने के आंकड़े दिखाकर तलपट बराबर कर दिया गया है। जबकि यह गंभीर जांच का विषय है कि जिन जरूरतमंद परिवारों ने नरेगा के तहत जोब कार्ड बनवाये, उनमें 44 प्रतिशत परिवारों ने रोजगार की मांग सचमुच नहीं की, या कि उनके आवेदनों को रफा-दफा कर दिया गया। जमीनी सच्चाई बताती है कि रोजगार की मांग के आवेदन लेने तथा उसकी पावती देने की कोई व्यवस्था कहीं नजर नहीं आती। ऐसे में रोजगार की मांग को कम करके दिखा देना बेहद आसान है।इससे भी ज्यादा चिंता का विषय यह है कि रोजगार की मांग करने वाले मात्र तीन प्रतिशत परिवारों को 100 दिन काम मिला। अक्तूबर 2008 तक 16।7 लाख परिवारों को काम मिला। इनमें मा।त्र 49 हजार परिवारों को सौ दिन काम दिया जा सका। कई जिलों में महिला श्रमिकों की उपेक्षा भी चिंताजनक है। बोकारो जिले में 24 हजार परिवारों को काम मिला। इनमें महिलाओं की सख्या मात्र 2363 है जो दस प्रतिशत से भी कम है। शर्मनाक तो यह कि सरकार की नाक के नीचे रांची जिले में 56603 परिवारों को काम मिला जिनमें महिलाओं की संख्या शून्य रही।बेहतर होगा कि नरेगा को झारखंड के भाग्यविधाता किसी बोझ के रूप में नहीं ले। राज्य के विकास के प्रति चितित हर नागरिक और सिविल सोसाइटी भी इस कानून को राज्य की सूरत बदलने के अवसर के बतौर देखे। यह कानून सिर्फ गांव के गरीबों की नहीं बल्कि पूरे राज्य की तकदीर बदल सकता है। लेकिन जहां करोड़ों रुपये खर्च करके बर्थडे मनाने की होड़ मची हो, वहा इसकी चिंता किसे है? ग्रामीण विकास मत्री के यहां बर्थडे पार्टी में किन 25 हजार लोगों ने दावत उड़ायी और महंगे उपहार दिये, इसकी जांच हो तो नरेगा की लूटखसोट में जुटे गंठजोड़ का चेहरा सामने आ सकता है।(लेखक झारखंड नरेगा वाच के संयोजक हैं)

Thursday, October 23, 2008


आदिम जनजातियों के संरक्षण एवं कल्याण के लिए
विभिन्न योजनाओं के समन्वय से बहुउद्देश्यीय सेवा केंद्र बनाएं

-बलराम
झारखंड अलग राज्य के गठन की अवधारणा का मूल आधार विभिन्न जनजातियों का समुचित विकास और उन्हें संरक्षण प्रदान करना था। लेकिन राज्य बनने के आठ वषZ बाद भी आदिम जनजातियों के विभिन्न हिस्सों की स्थिति चिंताजनक बनी हुई है। हाल के दिनों में भूख और बीमारी से हुई मौतें तो महज अब तक इस मामले में बरती गयी उदासीनता को उजागर करने वाला संकेतक मात्र है। इसलिए बेहतर होगा कि इन संकेतकों को गंभीरता से लेते हुए तत्काल हम ठोस, समिन्वत एवं दीघZकालिक कदम उठायें।केंद्र तथा राज्य सरकार की अनगिनत योजनाएं हैं जिनका लक्ष्य विभिन्न प्रकार के वंचित एवं जरूरतमंद तबकों के हितों की रक्षा एवं उनका कल्याण करना है। आदिम जनजातियों के हित में वर्तमान कार्यभार को पूरा करने की दिशा में हमें ऐसी समस्त योजनाओं एवं कार्यक्रमों को समिन्वत करने का एक रचनात्मक प्रयास करना चाहिए। इसके जरिये हम एक बहुउद्देश्यीय सर्विस केंद्र स्थापित करें तो ठोस एवं दूरगामी सफलता मिल सकती है। इसके लिए बिंदुवार सुझाव इस प्रकार हैं-
• आदिम जनजातियों की आबादी के प्रत्येक इलाके में बहुउद्देश्यीय सर्विस केंद्र यानी मल्टी परपस सर्विस सेंटर स्थापित करें
• इस केंद्र को मुख्यत: इन बिंदुओं पर काम करना है
खाद्य सुरक्षा या फूड सिक्यूरिटीव रोजगार सुरक्षा या जोब सिक्यूरिटीव वोकेशनल ट्रेनिंगव केंद्र एवं राज्य की विभिन्न योजनाओं का लाभ दिलाने का सिंगल विंडो टाइप सिस्टम
• इस केंद्र में एक सामुदायिक रसोईघर या कम्युनिटी कीचन की स्थापना की जाये जहां आदिम जनजातियों के प्रत्येक जरूरतमंद सदस्य को सुबह नाश्ता, दोपहर में भोजन और शाम को अल्पाहार का प्रबंध हो।
• जो आदिम जनजाति जिस पेशे से जुड़ी है या जिस कार्य में उसकी दक्षता है, उससे संबंधित वोकेशनल प्रिशक्षण का प्रबंध इस केंद्र में हो।
• समेकित बाल विकास परियोजना यानी आइसीडीएस के अंतर्गत मिलने वाली सभी सेवाओं का संचालन इस केंद्र में हो।
• स्वास्थ्य संबंधी नियमित जांच एवं सभी स्वास्य सेवाएं सुनििश्चत करना
• जननी सुरक्षा योजना का लाभ दिलाना
• जनवितरण प्रणाली का लाभ, अंत्योदय योजना का लाभ
• वृ़द्धावस्था पेंशन का लाभ दिलाया
• पोषण की व्यवस्था
• नरेगा के तहत मिलने वाली सुविधाए प्रदान करना
ऐसे केंद्रों का संचालन करने के लिए राज्य सरकार के आदिवासी कल्याण विभाग के द्वारा प्रत्येक केंद्र में एक ऐसे मल्टी-स्कील्ड वर्कर की नियुक्ति की जाये जिसे इन सभी योजनाओं एवं कार्यक्रमों की समुचित जानकारी हो।
उसके तीन काम होंगे- 1। केंद्र का संचालन, 2। प्रखंड कार्यालय के साथ लिंक परसन के रूप में काम करना। 3। सभी योजनाओं की निगरानी एवं जिला उपायुक्त को सीधे रिपोर्ट करना
इस रिपोर्ट के आधार पर उपायुक्त मासिक समीक्षा करेंगे और समुचित कदम उठायेंंगे।प्रत्येक तीन महीने पर राज्य के मुख्य सचिव हर जिले की समीक्षा करेंगे।

Monday, October 13, 2008


Convention on NREGA (Ranchi, 7-9 November 2008)

A three-day convention on NREGA will be held in Namkum Bagicha (near Ranchi) on 7-9 November, 2008. The aim of this convention is to review the status of NREGA in Jharkhand and plan future activities.

This event is a joint effort of many local organizations working on NREGA in Jharkhand. Members of these organizations met in Ranchi on 10 September and decided to call this convention.

Recent events in Jharkhand, including a spate of murders and suicides related to NREGA, highlight the need for a strong people's movement for the right to work. Among the main issues to be discussed at the convention are:
(1) demand for work and participatory planning;
(2) wage-related issues;
(3) social audits;
(4) struggles for the unemployment allowance;
(5) formation of NREGA unions.

Activists from all over Jharkhand, and also some other states, are expected to participate in this convention. The next preparatory meeting for this convention will be held in Ranchi on 13 October.
For further details please call Balram (9934320657) .

Wednesday, September 17, 2008